संजय उवाच
तुम परमाणु संरचना में
भटके हुए
इलेक्ट्रोन हो ,
या हो
ठहरे हुए पानी की सतह पर
तैरते हुए शैवाल ,
जिन्हें मात्र
" मज्झिम निकाय " की
भाषा आती है
जो भटकते है
अंतरिक्ष की धूल के सदृश
दिशाहीन ..........................
उस प्रगाढ़ रहस्य का
एक छोटा सा अंग बनकर
जो स्वयं में
एक “रहस्य “ होता है /
..........राजीव " सांकृत्यायन"
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