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रचना
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शब्द पार्थिव सो रहा
है
कुछ सहमकर 'सत्य ' कैसे
रो रहा है
आशपूरित लालिमा अब कालिमा
है
यह चतुर्दिक हो रहा
है
है नहीं कुछ
प्रकट !
है नहीं कुछ
प्रकट !
हा तमारस व्याप्त घन
में करुण क्रंदन
विकट
कुछ थके से
पद निरंतर बढ़
रहे हैं
'शुन्य पर गढ़
रहे हैं "
'शुन्य पर गढ़
रहे हैं "
-------------------------------------------------राजीव " सांकृत्यायन"
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