Jeevankepal

Sunday, August 4, 2013

Dvet


Posted by Rajeev Shangkrityayan at 10:21 AM No comments:
Newer Posts Older Posts Home
Subscribe to: Posts (Atom)

http://akathkathan.blogspot.com

  • (no title)
    क्रत्रिम मूल मेरे मन के सैकडो द्वारों से असंख्य ध्वनियाँ मुझ - तक आती हैं .. लौट जाती हैं ! मैं चिपका रहता हूँ ' अविचल ' अपने क्रत...
  • सबकुछ धुंध धूमिल
    सबकुछ धुंध धूमिल है यहाँ सब धुंध धूमिल एक तुम्ही हो चिर , अचिर मै देखता हूँ भ्रमित छाया वापियों इन वीथियों पर है तुम्हारी ...
  • (no title)
    संजय उवाच तुम परमाणु संरचना में भटके हुए इलेक्ट्रोन हो , या हो ठहरे हुए पानी की सतह पर तैरते हुए शैवाल , जिन्हें मात्र ...
  • Dvet
  • (no title)
    "समर्पण" असीम,सीमाओ में अव्यक्त, परिभाषाओ में व्यक्त कैसे करू निरपेक्ष, निरासक्त, निर्विघ्न यथार्थ अब नहीं बुद्धि कि पृष्टभूमि...
  • विमल
    " विमल " सूर्य रश्मि पर चढ़ कर आयी चंचल शीतल प्रेम लालिमा मेघों के झुरमुट ने रोकी राह , दिखा घनघॊर क...
  • (no title)
    ####### रचना ####### शब्द पार्थिव सो रहा है कुछ सहमकर ' सत्य ' कैसे रो रहा है आशपूरित लाल...
  • (no title)
    प्रथम दृष्टि प्रथम स्वर आज मैंने आसाम की गारो पहाड़ियों के विहँगों को जैसलमेर की मरुभूमि में देखे और देखा ! फूलों की घाटी में...
  • (no title)
    ' अनाम नाम ' किसी का कोई नाम नहीं क्यों की सब ' वो ' है और ' उसका ' नाम रखने वाला क...
  • Pathik

Blog Archive

  • September (2)
  • February (1)
  • October (2)
  • August (1)
  • September (1)
  • October (2)
  • December (1)
  • September (1)

Khoj

About Me

My photo
Rajeev Shangkrityayan
View my complete profile
Watermark theme. Powered by Blogger.