Saturday, February 13, 2010

सबकुछ धुंध धूमिल

सबकुछ धुंध धूमिल

है यहाँ सब धुंध धूमिल
एक तुम्ही हो चिर, अचिर मै
देखता हूँ भ्रमित छाया
वापियों इन वीथियों पर
है तुम्हारी अमिट माया

भोर बीते, दिवस बीते, रात आई
तुम्ही ने मेरे हृदय में "आशपूरित"
प्रेम की वीणा बजायी
तुम्ही ने गयी हृदय में
वेदना की मेघ पीड़ा

मै अनिश्चल , चल रहा हूँ
क्यों द्रवित हैं नयन तेरे
है अभिप्षित दासना, जो भी बची हो ,

मै तुम्ही हूँ हे प्रिये " मै ही तुम्ही हूँ "



राजीव ' साकृत्यायन '