Tuesday, October 25, 2011


संजय उवाच

तुम परमाणु संरचना में
भटके हुए
इलेक्ट्रोन हो ,

या हो

ठहरे हुए पानी की सतह पर
तैरते हुए शैवाल ,

जिन्हें मात्र
" मज्झिम निकाय " की
भाषा आती है

जो भटकते है
अंतरिक्ष की धूल के सदृश

दिशाहीन ..........................

उस प्रगाढ़ रहस्य का
एक छोटा सा अंग बनकर
जो स्वयं में
एकरहस्यहोता है /

..........राजीव " सांकृत्यायन"

Wednesday, October 12, 2011